दुर्गा पूजा का असली मतलब क्या है, उनके कितने अवतार है, और उनसे हमें क्या सीख मिलती है?
चंद दिनों की आस्था का ढोंग कब तक?
आज चारों ओर दुर्गा पूजा की धूम मची है। हर तरफ माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित है ”जय माता दी” की गूँज सुनाई दे रही है। लेकिन दुर्गा पूजा का असली मतलब क्या है? इससे हमें क्या सीख मिलती है? क्या महज़ मिट्टी की प्रतिमा की पूजा करने से और चंद दिनों की आस्था से सच में पूजा होती है? इस पोस्ट में जानेंगे सब कुछ।
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माँ दुर्गा के कितने अवतार है और दुर्गा पूजा में किनकी पूजा होती है?
माँ दुर्गा के नौ अवतार है और इनमें से सभी को अलग अलग तरह से पूजा जाता है। इनके अवतार कुछ इस प्रकार है:
१. शैलपुत्री
२. ब्रह्मचारिणी
३. चंद्रघटा
४. कुसुमान्डा
५. स्कंदमाता
६. कात्यायनी
७. कालरात्रि
८. महागौरी
९. सिद्धिदात्री
इन नौ अवतारों की अलग अलग तरह से पूजा-अर्चना होती है। नवरात्री के दौरान लोगो की आस्था असीम होती है तथा लोग घूम-घूम कर माता के अनेक प्रतिमाओं का दर्शन करते है। वैसे तो दुर्गा पूजा पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन अगर आप इसका लुत्फ़ सही से उठाना चाहते है तो आपको पश्चिम बंगाल या बिहार जाना चाहिए।
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दुर्गा पूजा का असली मतलब क्या है?
दुर्गा पूजा का मतलब है नारी की पूजा। नवरात्री के दौरान तो लोग कन्या की पूजा करते है लेकिन इसके बाद क्या? नवरात्री के दौरान तो हर नारी को सम्मान देंगे लेकिन उसके बाद क्या? उसके बाद फिर वही होगा जो होता आ रहा है। गलत निगाह से लड़कियों को देखना, उनको छेड़ना, और यहाँ तक की ऐसा काम कर देना जो नहीं होना चाहिए।
यदि किसी के घर में कोई लड़का जन्म लेता है तो लोग उत्सव मनाते है लेकिन वहीं अगर एक लड़की का जन्म होता है तो सारा उत्साह ठंढा पर जाता है। ऐसा क्यों? और इतना ही नहीं, विज्ञान की मदद से तो आज लोग जन्म के पहले ही ये पता कर लेते है कि माँ की कोख में लड़का पल रहा है या लड़की। अगर लड़का है तो सब ठीक है और अगर लड़की है तो जन्म से पहले ही उसे मारने की कोशिश करेंगे। ऐसा क्यों?
सभी जानते है कि सृष्टि का श्रेय नारी को ही है। नारी अलग-अलग समय पर अलग-अलग रूप में हमारे जीवन को सफल बनाती है। माँ बन कर जन्म देती है, बहन बन कर दुलार देती है, और आखिर में पत्नी बन कर पूरे जीवन साथ। और इन देवियों के साथ आज क्या हो रहा है – हर तरीके के अत्याचार और जुल्म।
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सजीव देवी को छोड़ मिट्टी की प्रतिमा की पूजा को प्राथमिकता क्यों?
आज हर दिन औरतों और लड़कियों पर अत्याचार हो रहा है। हर तरफ उनको बुरी नज़रों से देखा जा रहा है। तो ऐसे में एक ही सवाल मन में आता है – सजीव देवी को छोड़ मिट्टी की प्रतिमा की पूजा को प्राथमिकता क्यों? जब सजीव नारी के प्रति आस्था ही नहीं है तो नवरात्री में चंद दिनों की आस्था रख के कौन सा पुण्य का काम करते है लोग? क्या सिर्फ प्रतिमाओं की पूजा करना ही सही है या फिर असल जिंदगी में भी नारियों के प्रति उतना ही सम्मान होना चाहिए?
ये तो कमाल की बात है ना की नौ दिनों तक लोग पवित्र होने का दिखावा करते है और दसवें दिन से फिर वही रवैया। फिर ऐसी पूजा किस काम की? यदि पूजा ही करनी है तो घर में मौजूद मां, बहन, और पिता की क्यों नहीं? दुर्गा पूजा के दौरान लोग पूरी श्रद्धा से माता की प्रतिमा के आगे नतमस्तक होत रहे है लेकिन उस जन्म देने वाली मां को भूलते जा रहे है।
अरे मां यानि देवी, पिता यानि देव – जब घर में ही देव और देवी मौजूद है तो उनकी पूजा क्यों नहीं? दुःख होता है ये देख कर कि दुर्गा पूजा अब बस एक आडम्बर बन कर रह गया है और लोग सिर्फ दिखावे के लिए पूजा करते है।
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समझ नहीं आता कि वो नारी सम्मान – जो नवरात्री में लोग दिखाते है – आखिर कहाँ चला जाता है जब वो राह चलती लड़की या औरत को गलत निगाह से देखते है, उनके ऊपर जुल्म ढाते है। क्या यही देवी पूजा है?
सच्ची पूजा का मतलब है हर किसी का सम्मान करना, नारी को इज़्ज़त देना, माँ-बाप का आदर करना, व लोगो के प्रति दया-भाव रखना। मुझे पता है कि मेरी बातें थोड़ी कड़वी जरूर लग रही होंगी लेकिन यही सच्चाई है। तो आइये इस दुर्गा पूजा के शुभ अवसर पर हम सब सपथ लें कि हमेशा नारी-जाति का सम्मान करेंगे तथा उन्हें किसी भी तरह की तकलीफ नहीं होने देंगे।
Hinglish News के टीम की तरफ से आपको और आपके परिवार को दुर्गापूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं।
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